Friday, January 11, 2019

ठंड को मात देने वाले इन अजब-गजब लोगों के बारे में जानें

Tenzing Norgay and Edmund Hillary
सर्दी की छुट्टियों में तुम लोग कभी-न-कभी बर्फ वाली जगह पर जरूर गए होगे। वहां कितनी सर्दी पड़ती है ना। पर कभी सोचा है कि दुनिया की सबसे ठंडी जगहों पर पहली बार पहुंचने वाले लोगों ने कैसा महसूस किया होगा? उन्होंने वहां क्या किया होगा? और सबसे खास बात यह कि वहां पहली बार गया कौन होगा? तुम्हारे इन्हीं कुछ सवालों का जवाब दे रही हैं चयनिका निगम
दुनिया की सबसे ठंडी जगहों पर ठंड इतनी होती है कि हम और तुम वहां जाने की सोच भी नहीं सकते। ऐसे में सबसे पहली बार इस ठंड को महसूस करने वाले लोग कितने हिम्मती होंगे ना। पता है, इनमें से किसी ने यहां पहुंचकर स्कीइंग का मजा लिया था, तो कोई अपने प्यारे कुत्ते को अपने साथ ले गया था। यही नहीं, बर्फीले पानी में भी स्विमिंग करने का रिकॉर्ड टूट चुका है। ठंड को मात देने वाले इन अजब-गजब लोगों के बारे में तुम भी जानो:
सातों समिट की पहली यात्रा
तुम जानते ही होगे कि ये दुनिया सात महाद्वीपों (कॉन्टिनेंट्स) से मिलकर बनी है। सातों महाद्वीपों के पास अपने-अपने सबसे ऊंचे पर्वत भी हैं। इन्हीं पर्वतों को ‘सेवन समिट’ कहा जाता है। इन सातों ऊंची शृंखला तक पहली बार पहुंचने का कारनामा भी पूरा किया जा चुका है। आज से करीब 34 साल पहले 30 अप्रैल, 1985 को अमेरिका के रिचर्ड बैस ने सातों समिट की सैर कर रिकॉर्ड बना डाला था। 1929 में जन्मे रिचर्ड इन समिट में ही शामिल माउंट एवरेस्ट पर भी जा चुके हैं। उनकी इस यात्रा की खास बात यह थी कि जब वे इस यात्रा पर थे, तब उनकी उम्र 55 के करीब थी और 1985 में उन्होने ‘सेवन समिट’ की यात्रा पूरी की। इस दौरान जब वे माउंट एवरेस्ट पर पहुंचे तो सबसे ज्यादा उम्र में यहां पहुंचने वाले व्यक्ति बन गए। मतलब माउंट एवरेस्ट पर कदम रखने वाले सबसे बुजुर्ग व्यक्ति भी रिचर्ड बैस ही हैं।
माउंट एवरेस्ट पर पहला कदम
शायद तुम स्कूल में सर एडमंड हिलेरी का नाम सुन चुके होगे। अगर नहीं सुना है तो जान लो कि न्यूजीलैंड के रहने वाले हिलेरी वो पहले इंसान हैं, जो माउंट एवरेस्ट के टॉप पर पहुंचे थे। उस वक्त न फोन की सुविधा थी और न ही माउंटेनियरिंग से जुड़ी दूसरी सुविधाएं। बर्फ के कठिन रास्तों से होते हुए बिना किसी खास सुख-सुविधा के एडमंड जब एवरेस्ट पहुंचे थे, तो साथ में उनके शेरपा गाइड तेन्जिंग नोर्गे भी थे। दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत पर पहुंचने के लिए उन्होंने 29,029 फीट की ऊंचाई पूरी की थी। 1953 में हुए इस कारनामे को दुनियाभर में सराहा गया था। अपने इस अनोखे कदम के बाद हिलेरी ने ऐसे कई और दूसरे काम भी किए थे। उन्होंने बाद में साउथ पोल और नॉर्थ पोल का सफर भी किया था।
नॉर्थ पोल अकेले पहुंचने वाली महिला
नॉर्थ पोल पर जमा देने वाली ठंड होती है। ऐसे में वहां जाने की हिम्मत कौन कर सकता है? पर यूनाइटेड स्टेट की हेलेन थायर अकेले नॉर्थ पोल की यात्रा करने वाली पहली महिला बनीं। अनोखी बात यह है कि हेलेन वहां अकेले नहीं पहुंची थीं, बल्कि उनके साथ उनका कुत्ता चार्ली भी था। इस कुत्ते के साथ हेलेन ने अपने साथ 73 किलो सामान भी लाद रखा था। दरअसल लोगों को लगा था कि हेलेन ये यात्रा नहीं कर पाएंगी। वजह थी हेलेन की उम्र। साल 1988 में नॉर्थ पोल पहुंचने वाली हेलेन उस वक्त 50 साल की थीं। उनकी उम्र को देखते हुए सभी को लगा था कि एक तो महिला और वो भी 50 साल की, ये काम तो नहीं कर पाएगी। पर हेलेन ने सबको गलत साबित कर दिया। उन्होंने जमा देने वाली सर्दी के बीच चलते हुए 27 दिनों में अपनी यात्रा पूरी कर ली। बाद में हेलेन ने ऐसी कई यात्राएं कीं।
अंटार्टिका पर पहुंचने वाली पहली महिला
1978 में जन्मीं फेलिसिटी एस्टन ने 34 साल की उम्र में वो कारनामा कर दिखाया था, जो लोग आसानी से करने की सोच भी नहीं पाते हैं। उन्होंने अकेली अंटार्टिका पहुंचने वाली पहली महिला के तौर पर इतिहास में अपना नाम दर्ज किया है। साल 2012 में वो 59 दिनों के लंबे सफर के बाद अंटार्टिका पहुंच पाई थीं। इस दौरान एस्टन ने 1084 मील का सफर तय किया था। सिर्फ इतना ही नहीं, एस्टन ऐसी पहली महिला भी बनी थीं, जिन्होंने बिना किसी स्टील के स्टिक का इस्तेमाल किए अंटार्टिका में स्कीइंग भी की थी। उन्होंने सिर्फ खुद की मसल्स स्ट्रेंथ का इस्तेमाल करके ऐसा किया था। बाद में एस्टन दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत  भी बनीं। उन्होंने ‘ऑल वुमन रेसेज एंड ट्रेक्स’ शुरू करके दूसरी महिलाओं को प्रेरित करना भी शुरू किया।
नॉर्थ पोल में पहली स्विमिंग
नॉर्थ पोल की सर्दी और ऊपर से बर्फ का पानी। इसमें स्विमिंग करने के बारे में कोई सोच भी कैसे सकता है? पर लुइस पुघ ने ऐसा सोचा ही नहीं, बल्कि करके भी दिखा दिया था। उन्होंने नॉर्थ पोल की सर्दी के बीच जमे हुए पानी में तैराकी की थी। वैसे तो पूरा पानी ही जमा हुआ था, लेकिन ये कहीं-कहीं पिघला भी हुआ था। लुइस इसके माध्यम से लोगों को पर्यावरण के रखरखाव का संदेश देना चाहते थे, क्योंकि बर्फ के बीच कहीं-कहीं पानी, निश्चित ही प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा था। अपनी इस यात्रा में वे कहना चाहते थे कि प्रकृति का ख्याल रखा जाता तो आज ये पानी न पिघला होता। अपने इसी संदेश के लिए उन्होंने साल 2007 में नॉर्थ पोल के आर्कटिक महासागर में पूरे एक कि.मी. की यात्रा की थी। इस दौरान यहां का तापमान -0 डिग्री से भी नीचे था।
दुनिया के दक्षिणी कोने पर पहला कदम
तुम जानते हो कि दुनिया का सबसे दक्षिणी कोना कौन-सा है? साउथ पोल, वही साउथ पोल, जहां पड़ने वाली ठंड के बारे में सोचोगे तो भी कंपकंपी होने लगेगी। इस पर पहले कदम किसके पड़े थे? रोल्ड आमुंडसेन, वही रोल्ड, जिनको साउथ पोल पर पहली बार जाने के लिए पहचाना जाता है। रोल्ड ने 14 दिसंबर, 1911 को पहली बार साउथ पोल पहुंच कर इतिहास अपने नाम कर लिया था। माना जाता है कि साउथ पोल में नॉर्थ पोल से भी ज्यादा ठंड होती है। जनवरी महीने के मध्य में यहां का तापमान कई बार -25 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच जाता है। रोल्ड ने ठंड के थपेड़ों को झेलते हुए यह यात्रा सिर्फ 34 दिनों में पूरी की थी। नॉर्वे के रहने वाले रोल्ड ने यह यात्रा अमेरिकी रॉबर्ट फल्कोन से भी पहले पूरी की थी।

No comments:

Post a Comment